निसर्ग प्रकृति के साथ सामंजस्य में जीवन को उर्जा प्रदान करते हुआ।
अथर्ववेद के एक छंद में कहा गया है
“हे धरती! जो कुछ भी मैं तुमसे लूँगा
वह उतना ही होगा जितना तू पुनः पैदा कर सके!
तेरे मर्मस्थल पर या तेरी जीवन शक्ति पर कभी आघात नहीं करूंगा।”
चीफ सीएटल, एक प्रसिद्द उत्तरी अमेरिकी आदिवासी ने 200 वर्ष पूर्व संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति को एक अद्भुत पत्र लिखा था। यह पत्र, जो जीवन के ताने बाने का बहुत सुन्दरता के साथ अभिग्रहण करता है कालातीत बुद्धिमता के बेहतरीन कृतियों की याद दिलाता है।
जॉर्ज वाशिंगटन का चीफ सीएटल को उत्तर
“वाशिंगटन से राष्ट्रपति ने हमें संदेश भेजा है कि वह हमारी ज़मीन खरीदना चाहते हैं। लेकिन आप आकाश का, धरती का क्रय-विक्रय कैसे कर सकते हैं? यह विचार हमारे लिए अजीब व विस्मयकारक है यदि हवा की ताजगी और पानी की चमक हमारी मिल्कियत नहीं है तो आप उसे कैसे खरीद सकते हैं? हमारे लोगों के लिए धरती का प्रत्येक भाग पावन है। चीड़ की हर चमकदार नुकीली हरी पत्ती, प्रत्येक समुद्री बलुआ किनारा, गहरे घने जंगलों का कुहासा, घास का प्रत्येक मैदान, मक्खियों की भिनभिनाहट। ये सब हमारी स्मृति और अनुभव में पवित्र हैं।
हम पेड़ों में बहते रसों के प्रवाह से ऐसे परिचित हैं जैसे हमारी रगों में बहता हमारा लहू। हम धरती के हिस्से हैं और यह धरती हमारा। सुगंधित पुष्प हमारी बहन है। भालू, हिरन, महान गरुड़ ये सब हमारे भाई हैं। चट्टानी चोटियाँ, घास के मैदान की शबनम, छोटे घोड़ों की गरम शरीर और मनुष्य सब एक परिवार हैं।
नदियां हमारे भाई हैं। वे हमारी प्यास बुझाती हैं। वे हमारी डोंगी को खेती हैं और हमारे बच्चों का भरण करती हैं। अतः आपको नदियों से वैसी ही उदारता रखनी चाहिए जैसी आप अपने भाई से रखते हैं।
यदि हम आपको अपनी धरती देंगे तो याद रखिए कि वायु हमारे लिए अनमोल है, वायु अपनी आत्मा उन सभी ज़िंदगियों में बांटती है जिसे यह सहारा देती है। वायु जिसने हमारे दादा को पहली श्वास दिया उसने ही उनकी अंतिम आह भी ग्रहण किया। हवा ने ही हमारे बच्चों को जीवन का जोश दिया। अतः यदि हम आपको अपनी धरती देते हैं तो उसे इस तरह से पृथक और पवित्र रखना कि वह एक ऐसी जगह हो जहां लोग जा सकें और मैदानों के पुष्पों से मधुसिक्त हवा का स्वाद ले सकें।
क्या आप अपने बच्चों को वह सिखायेंगे जो हमने अपने बच्चों को सिखाया है? यह कि धरती हमारी माँ है? जो कुछ भी पृथ्वी के साथ बुरा होता है वह पृथ्वी के सभी संतानों के साथ होता है।
हम यह जानते हैं: कि यह पृथ्वी मनुष्यों की नहीं है बल्कि मनुष्य धरती के हैं। सभी चीजें रक्त की तरह जुड़ी है और हम सभी को एकताबद्ध करती हैं। मनुष्य ने जीवन का जाल नहीं बुना था ,वह मात्र इसका एक रेशा है। जो कुछ भी यह इस जाल के लिए करता है वह उसे स्वयं के लिए करता है।
यह उनमें से कुछ है जो संतुलन बरक़रार रखने के लिए हमेशा से संवेदनशील रही पारिस्थितिकीय विविधता में हमारी भूमिका की आवश्यकता को समझने के लिए हमें प्रेरित करती हैं। इससे हमें विश्वास हुआ कि हम वस्तुतः सभ्य नहीं हो रहे हैं, अगर हम केवल आदमी से आदमी के संबंध तक ही स्वयं को सीमित रखें; जो महत्वपूर्ण है वह है मनुष्य का सभी जीवों के साथ संबंध – ऐसा संबंध जिसमें वास्तविक रूप से सभी जीवों – पौधे, जानवर, निर्जन प्रदेश, व्यक्ति सब के लिए श्रद्धा हो, ऐसा संबंध जो जीवन को प्रकृति के साथ सामंजस्य की दिशा में ले जाए।“
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