एक व्यापक उत्तरदायित्व में साझेदारी के संबंध में
बीपीसीएल में हम मानते हैं कि समाज के लिए कुछ करना सभी की ज़िम्मेदारी है। इसी कारण, हम मानते हैं कि हमारी कुछ बेहतरीन से बेहतरीन उपलब्धियां वे नहीं हैं, जो तुलनपत्र में पायी जाती हैं, किंतु वे हैं जो समूचे भारत में छोटे छोटे नगरों एवं गांवों में फैली हुई हैं। इस व्यापक उत्तरदायित्व को साझा करने की शुरूआत 1984 से हुई थी, जब “समाज/समुदाय को कुछ वापस करने” की हमारी सोच को अपनाने के साथ, हमने अपने कर्मचारियों या उनके परिवारों सहित सभी लोगों को उनकी ज़िंदगी को बेहतर बनाने में मदद करने का लक्ष्य रखा। इसमें हमने परिवार की परिभाषा को भी बदला और न केवल उन लोगों के परिवारों पर ध्यान दिया जो हमारे साथ हमारे कार्यालय में बैठते हैं। बल्कि हमने ग्रामीण भारत के लोगों को भी अपने लक्ष्य में शामिल किया। आज, हम उन्हें हमारा बृहद् परिवार कहते हैं, यानी ग्राम विस्तारों में बसे हमारे गांव वासियों।
भारत में सामाजिक विविधता है, जहाँ समाज का लगभग 30% हिस्सा शहरों में रहता है, वहीं इसकी लगभग दोगुनी जनसंख्या -लगभग 700 मिलियन भारतीय गाँवों में रहते हैं, जिसे हम ग्रामीण भारत के रूप में देखते हैं। अब ग्रामीण भारत में भी एक अलग ही असमानता है, कुछ स्थान पूरी तरह समृद्ध हैं और कुछ उसके ठीक उलट, अकाल और कुछ अन्य मुश्किल मौसमी और वातावरण संबंधी मुश्किलों से घिरे हुए हैं। कहीं पर ये गाँव शहरों से इतने दूर बसे हुए हैं कि इन पर ध्यान ह नहीं जाता है।
बीपीसीएल ने सामाजिक उत्थान के अपने उद्देश्य के चलते, 1986 में अपनी मुंबई रिफ़ाइनरी के नज़दीक ही स्थित माहूल नाम के गाँव में आरंभिक रूप से काम करना शुरू किया। माहूल के निवासी मूल रूप से मछुआरे थे, जो कि समुद्री दौलत और संसाधनों के पास होने के कारण पर्यायप्त रूप से धनवान थे। किंतु शिक्षा, स्वास्थ्य आदि के क्षेत्र में उन्हें सलाह और मदद की आवश्यकता थी। बीपीसीएल ने स्वयंसेवा आरंभ की और आरंभिक सफलता से इतना संतोषपूर्ण परिणाम मिला कि हमने तुरंत ही करजत नाम का एक दूसरा गाँव (इस बार हमने करजत नाम के एक अंदरूनी गाँव को चुना) गोद ले लिया। निस्वार्थ उद्देश्यों के चलते किए गए विकास कार्यों से हमें बीपीसीएल की भावी भूमिका को भी मूल्यांकित करने का मौका मिला। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु हमने इस प्रकार के प्रयासों में योगदान करने का निर्णय लिया। इसके बाद हमने कभी मुड़कर नहीं देखा।
कॉर्पोरेट उत्तरदायित्व के भाग के रूप में, आज बीपीसीएल ने भारत भर में 37 गाँवों को गोद ले रखा है। गोद लेने की इस प्रक्रिया में हमारे द्वारा एक से डेढ़ दशक तक उन गाँवों में महत्वपूर्ण निवेश करके व्यावसायिक प्रशिक्षण और खेती संबंधी नवाचारों की जानकारी के द्वारा उन गाँवों को आत्मनिर्भर बनाने, उन्हें पीने का साफ़ पानी मुहैया कराने, सफ़ाई व्यवस्था को बहाल करने, मेडिकल सुविधाओं, और उनकी आय के मानकों को बेहतर बनाने आदि बातें शामिल हैं। हालांकि, बीपीसीएल का यह भी मानना है कि गाँव के युवा वर्ग और बुज़ुर्गों को शिक्षित करके ही उन्हें उनकी वर्तमान स्थिति से ऊपर उठाकर विकास के रास्ते पर आगे बढ़ाया जा सकता है। नए विद्यालय खोलने और प्रौढ़ शिक्षा कैम्प्स को बढ़ावा देने हेतु अनुदान प्रदान करने की बातों पर भी ध्याना दिया जाता है।
यह वाकई अपने आप में एक बहुत बड़ा कार्य है। इसलिए ही बीपीसीएल ने इसकी व्यापकता को देखते हुए ही अपने सपने को साकार करने हेतु इन केंद्रों के आस-पास के इलाकों में काम करने वाले ग़ैर-सरकारी संगठनों से भी मदद ली है। इस कार्य को बीपीसीएल द्वारा केवल अपने कर्मचारियों के बल पर पूरा करना वैसे भी अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती साबित होती।