परियोजना बूँद
परियोजना बूँद, बीपीसीएल के प्रमुख सीएसआर कार्यक्रम ने भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड को "सामाजिक दायित्व के लिए उत्कृष्टता पुरस्कार" दिलवाया है जिसकी घोषणा हाल ही में आयोजित 21 वीं विश्व पेट्रोलियम कांग्रेस में मास्को में की गई। भारत पेट्रोलियम ने यह प्रतिष्ठित मान्यता दुनिया भर में हुए 100 नामांकन के साथ हुई प्रतिस्पर्धा में शेल और एक्सॉन मोबिल जैसे फाइनलिस्ट के बीच प्राप्त की।
तकनीकी विकास एवं सामाजिक दायित्व के क्षेत्र में उत्कृष्टता के उच्च मानकों के साथ काम करने वाली कंपनियों को लक्ष्य करते हुए, विश्व पेट्रोलियम परिषद उत्कृष्ट परियोजनाओं और तेल और गैस के क्षेत्र में नवाचारों को हर तीन साल में उत्कृष्टता पुरस्कार (WPCEA) के साथ मान्यता देता है। भारत पेट्रोलियम को अपनी क्रांतिकारी पहल 'परियोजना बूँद' पर इसे प्राप्त करने पर गर्व है। श्री के.के. गुप्ता, निदेशक विपणन ने भारत पेट्रोलियम के लिए यह पुरस्कार 16 जून 2014 को मास्को में विश्व पेट्रोलियम कांग्रेस में प्राप्त किया।
2009 में चार गांवों के साथ प्रारंभ करके, आज बीपीसीएल ने परियोजना बूँद के माध्यम से 150 से अधिक गांवों को जल परिपूर्ण आवासों में परिवर्तित कर दिया है।
पानी की हर बूंद कीमती है
“यदि इस ग्रह पर कहीं भी जादू है, तो यह पानी में समाहित है। हमें केवल तभी पानी की कीमत मालूम होती है, जब कुएं सूख जाते हैं।”
भारत में पानी की कमी अब दशकों तक सुर्खियों में रहने वाली है। यह स्थिति इतनी गंभीर है कि हमारे देश में हजारों लोगों को बुनियादी पेयजल भी उपलब्ध नहीं हो पाता है। भारत की आबादी दुनिया की आबादी की 17 प्रतिशत है, जबकि जल संसाधन दुनिया के जल संसाधनों के केवल 4 प्रतिशत हैं। जल उपलब्धता में कमी तथा खराब प्रबंधन प्रक्रियाओं के परिणाम खराब स्वच्छता सुविधाओं के रूप में देखने को मिलते हैं, जो आज भारत के समक्ष सबसे बड़ी पर्यावरणीय एवं सामाजिक चुनौतियों में से एक है। (संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट)।
ग्रामीण एवं शहरी भारत में रहने वाले हजारों लोगों द्वारा लड़े जा रहे इस दैनिक संग्राम की गंभीरता को समझते हुए, बीपीसीएल ने स्वयं को इस कारण के प्रति प्रतिबद्ध किया है तथा इस समस्या से निपटने के लिए परियोजनाओं का समर्थन किया है। जब हमने काम करना शुरू किया, तो हमने ‘पेयजल’ पर ध्यान केंद्रित किया – तथा वे परियोजनाएं शुरू कीं, जो पीने के उद्देश्य के लिए पानी के संरक्षण को सुविधा प्रदान करने की दिशा में थीं। हालांकि, हमने धीरे-धीरे उन परियोजनाओं एवं प्रक्रियाओं को शामिल करने की अपनी रणनीति विकसित की, जो कृषि, पशुधन एवं भूजल पुनर्भरण के लिए पानी की उपलब्धता को बढ़ाने की दिशा में लक्षित है, जिसमें से सभी महत्वपूर्ण लगीं, क्योंकि हम लगातार बोर-वेल का उपयोग कर रहे थे, जिसके परिणामस्वरूप भूजल में कमी हो रही थी।
दक्षिण भारत (तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक) में, यह देखा गया है कि टैंक-प्रपात, बोर-वेल एवं स्थानीय तालाब, जो उन क्षेत्रों में सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण स्रोत, एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं स्थानीय पारिस्थितिकी प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण हैं, रिकार्ड कम वर्षा, एवं लापरवाही के कारण निरर्थक हो गए हैं। भूजल घट रहा है, और टैंक-जलप्रपातों, जैसी पारंपरिक संग्रहण प्रणाली के रखरखाव में कमी ने इसकी भंडारण क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। इस गंभीर स्थिति को ध्यान में रखते हुए, हमने 'टैंक-प्रपातों' के संरक्षण, प्रबंधन एवं रखरखाव के लिए, तथा खेत तालाबों को पुनर्जीवित करने के लिए डीएचएन फाउंडेशन के साथ करार किया है।
'जल की कमी से जल की प्रचुरता तक'
हम कर्नाटक के कोलार एवं टुमकुर जिलों के कुछ हिस्सों में टैंकों को पुनर्जीवित करने के लिए किसानों को एक साथ लाने में सफल रहे, जो गंभीर सूखे का सामना कर रहे थे, और इसने उनकी अर्थव्यवस्था को कमजोर कर दिया था और बड़े पैमाने पर लोगों को शहरी भारत की ओर पलायन करने के लिए प्रेरित किया था। अधिकांश खुले कुएं सूख गए थे, और मिट्टी की नमी भी समाप्त हो चली थी और 2 मीटर की गहराई पर भी भुरभुरी हो गई थी। हालांकि, किसानों के प्रयासों के कारण, जिन्हें वयालागाम्स नामक समूहों के रूप में एकत्र किया गया, वे निम्नलिखित लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम थे:
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उन्होंने कई टैंकों एवं उनके फीडर चैनलों की सफाई की, बांध को पुनः मजबूत किया, अतिक्रमण को हटाया तथा मिट्टी के कटाव को रोकने हेतु तट के अग्र भाग में वृक्षारोपण किया।
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करीब 15 करोड़ लीटर जल की कुल भंडारण क्षमता के साथ 200 से अधिक खेत तालाब, गांव के तालाब और कुओं को बहाल किया / बनाया ।
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लगभग 45 टैंकों को नवीनीकृत किया
पुनर्भरण किए गए टैंकों से मछली पालन, तथा बांध एवं मध्यभाग क्षेत्रों पर फलदार वृक्षों के वृक्षारोपण के माध्यम से राजस्व में भी वृद्धि हुई; तुकनेश्वर, जो पेशे से एक किसान है, ने बैंगन और गेंदें की फसलें उगाईं, जिससे उसने पिछले वर्ष 1 लाख रुपये की आय की।
इन जलप्रपातों के पुनर्वास के लिए तथा एक स्थाई रणनीति के रूप में, हमने 'वयालागाम्स' नामक टैंक फार्मर्स एसोसिएशंस में गांव के सदस्यों को शामिल किया, जो इस परियोजना के कार्यान्वन, संचालन तथा रखरखाव की प्रक्रिया में संलग्न थे। 95 से अधिक गांवों में इन टैंक-जलप्रपातों के पुनर्वास की दिशा में हमारे निरंतर प्रयासों के माध्यम से, हम समुदाय की मौसम पर निर्भरता को कम करने में सफल रहे हैं, जिसके फलस्वरूप भूमिहीनों के लिए आजीविका के अवसरों में वृद्धि हुई है। ।
महाराष्ट्र के ठाणे जिले में मोखडा, जो गर्मियों के दौरान पानी की भारी कमी का सामना करता है, एक अन्य क्षेत्र है, जहाँ शुरू की गई परियोजनाएं जल संरक्षण पर केंद्रित हैं। जबकि इस क्षेत्र में बहुत अधिक वर्षा होती है, लेकिन अत्यधिक ढाल एवं भौगोलिक परिस्थितियों के परिणामस्वरूप पानी बह जाता है, जिससे पानी की कमी हो जाती है। यह क्षेत्र कुपोषण एवं उच्च बेरोजगारी दर के कारण होने वाली मौतों के लिए भी कुख्यात है। इसके अलावा, चूँकि इस क्षेत्र की खेती काफी हद तक वर्षा पर निर्भर होती है, अतः भूस्वामी किसान केवल खरीफ के मौसम में निर्वाह के लिए खेती कर सकते हैं, जो गैर-मानसून अवधि में बड़े पैमाने पर पलायन का कारण बनता है। इसके परिणामस्वरूप महिलाओं को कठिन परिश्रम भी करना पड़ता है, चूँकि उन्हें अन्य कार्यों के बीच, पानी लाने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है।।
इस प्रकार, प्रवास को कम करने और स्थानीय लोगों के समक्ष आ रही जल संबंधी कठिनाइयों तथा चुनौतियों को कम करने के उद्देश्य के साथ, हमने तालाब, कुएं, पीपा तथा पेड़ों के घेरे जैसी स्वदेशी संरचनाओं का निर्माण करने के लिए परियोजनाएं शुरू कर दी हैं, ताकि पीने के लिए, घरेलू कार्यों तथा पशुओं के लिए अधिक पानी उपलब्ध हो। इन गतिविधियों से बागवानी और कृषि जैसी अन्य स्थायी आजीविका गतिविधियों को प्रोत्साहित करने में भी मदद मिली है। इस परियोजना के माध्यम से, हमने किसानों को खेती के अलग अलग तरीकों के बारे में प्रशिक्षित किया है, तथा इन्हें अपनाने में सहायता भी प्रदान की है।
इन परियोजनाओं के प्रवर्तन के बाद से, हमने 50 करोड़ लीटर पानी एकत्र किया है। इन परियोजनाओं के कारण, न केवल किसानों और उनके परिवारों को पानी के लिए कम दूरी तय करनी पड़ती है, बल्कि इससे उनकी पानी के टैंकरों पर निर्भरता भी कम हो गई है।
जल संरक्षण करना
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जल संरक्षण के लिए तालाबों, कुओं, पीपों तथा पेड़ों के घेरों जैसी स्वदेशी संरचनाओं का निर्माण किया गया
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मोखाडा में 37 करोड़ लीटर से अधिक पानी एकत्र किया गया
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बागवानी और कृषि जैसी अन्य स्थायी आजीविका गतिविधियों को प्रोत्साहन मिला
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युवाओं के शहरी भारत के ओर पलायन में कमी
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पानी के टैंकरों पर समुदाय की निर्भरता में 50% की कमी
महाराष्ट्र राज्य में स्थित, विदर्भ में आत्महत्या के आंकड़े, इस तथ्य की दर्दनाक याद दिलाते हैं कि उस सकल असमानता को दूर करने के लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है, जो हमारे समाज में मौजूद है। इस पर ध्यान देने के लिए, हमने एम एस स्वामीनाथन अनुसंधान संस्थान के साथ मिलकर, वर्धा और यवतमाल में महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना नामक एक परियोजना शुरू की है, जो इन क्षेत्रों में किसानों, विशेष रूप से महिला किसानों को सशक्त बनाने पर लक्ष्यित है। इस परियोजना में शामिल हैं:
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इन क्षेत्रों में मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना करना
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खेती के बेहतर तरीकों को अपनाने में किसानों की सहायता करने के लिए एक हेल्पलाइन शुरू करना
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ऑडियो- परामर्शदाताओं का प्रचार-प्रसार
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फोन आधारित एक अद्वितीय प्रणाली का निर्माण किया गया, जो फसल - प्रबंधन से संबंधित सारी जानकारी प्रदान करती है,
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इस परियोजना में 1773 किसानों को शामिल किया गया, जिसमें से 1080 महिला किसान थीं
हमने राजस्थान राज्य में, भरतपुर में, जिसका इतिहास सूखा और बाढ़ से भरा हुआ है, कई वर्षा जल संचयन परियोजनाओं का भी समर्थन किया है। चरम मौसम स्थितियों तथा सीमित वर्षा ने इस क्षेत्र को बंजर बना दिया है। इसने इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित किया है, जो काफी हद तक कृषि पर निर्भर है। हमारी परियोजनाएं यूजी बूँद के आसपास के कुओं और हैंडपंपों में जल प्रतिधारण अवधि, और मिट्टी में नमी प्रतिधारण में वृद्धि करने में सक्षम रही हैं। इसने गेहूं और सरसों की सिंचाई को भी अधिक सुविधाजनक बना दिया है, क्योंकि अब बोरवेलों से कम पानी की आवश्यकता होती है।
इसके अलावा, हम इस क्षेत्र के प्राणीजात एवं वनस्पतियों को बहाल करने में भी सफल हुए हैं। स्थानीय पारिस्थितिकी सेटअप के आसपास तितलियों और ओडोनेट्स जैसे जीवों के जैव-सूचक समूह दिखाई देने की आवृत्ति में वृद्धि के साथ-साथ, नहर के आसपास के हरित क्षेत्र में वृद्धि हुई है।
हमारी सभी बूंद परियोजनाओं को स्थायित्व की आवश्यकता है; यह सुनिश्चित करने के लिए कि हमारे द्वारा शुरू की गई सभी परियोजनाएं स्थायी हैं, हमने 'समुदाय की भागीदारी' को सभी स्तरों पर हमारी परियोजनाओं का एक अभिन्न हिस्सा बना दिया है। समुदाय को प्रस्तावित पेयजल एवं सिंचाई संरचनाओं के नियोजन, क्रियान्वयन एवं रखरखाव में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया गया था। परियोजनाओं में उनकी भागीदारी को आगे बढ़ाने के लिए, हमने उन्हें खर्च में 25% का योगदान करने के लिए भी प्रेरित किया ताकि वे और अधिक जिम्मेदार हो जाएँ और इसका स्वामित्व ग्रहण करें। यह स्वयं समुदाय के लिए भी योगदान करता है, जहाँ वे परियोजनाओं के लिए योगदान करने की प्रक्रिया में अतिरिक्त कौशल ग्रहण करते हैं। समुदाय का योगदान समुदाय की प्रतिबद्धता में वृद्धि करता है, उन्हें प्रोत्साहित करता है, इस प्रकार परियोजनाओं के लिए एक लंबी अवधि के स्थायित्व का विकास करता है। प्रतिभागियों को शिक्षित एवं सशक्त बनाने के लिए, ग्राम जल समिति, महिलाओं के स्वयं सहायता समूह, कृषक समूह एवं बच्चों के जल क्लब, जैसी कई समितियों का गठन भी किया गया था। इसने इसे एक संगठित प्रयास का रूप दे दिया, जहाँ समुदाय के सभी सदस्य एक विशेष लक्ष्य की दिशा में ध्यान केंद्रित करते हैं तथा कार्य करते हैं । अन्त में, हमने इन सामुदायिक समूहों की क्षमता बढ़ाने के लिए भी सत्रों का आयोजन किया। इन सत्रों ने उन्हें स्वतंत्र रूप से परियोजनाओं का रखरखाव एवं निगरानी के लिए आवश्यक कौशल से सुसज्जित किया। एक वांछित लक्ष्य प्राप्त करने के लिए, समुदाय को शामिल करना, उन्हें एक वित्तीय योगदान करने के लिए प्रोत्साहित करना, केंद्रित प्रयास करने एवं क्षमता में वृद्धि करने के लिए समुदाय को कार्य समूहों के रूप में व्यवस्थित करना, आदि प्रक्रियाओं ने हमारे लिए, समुदाय को आत्मनिर्भर बनाने के बाद, उन क्षेत्रों से बाहर निकलने के लिए एक प्रभावी नींव का निर्माण करने का नेतृत्व किया है।